स्वाभिमान :
कहते हैं सीधा पेड़ पहले कटता हैं , मैं कहता हूँ सीधा भी सत्ता में आकर टेढ़ा हो जाता हैं ,
सीधा ही रहा पेड़ अगर,, तो सत्ता में कहाँ टिक पाता हैं |
कहता हूँ क्यों नहीं पी पाता अपमान , जब नहीं आता बेचना तुझे अपना स्वाभिमान,
जो स्वाभिमानी होता हैं कभी अच्छा व्यापारी नहीं बन पाता हैं , देश का सौदा नहीं कर पाता हैं ,
असल मजा तो बेचने मै आता हैं तू बैठा बैठा समझदारी का चौपाल लगाता हैं ,विडंबना ये हैं ,कोई भी समझदारी का मत तेर पक्ष में नहीं आता हैं , पागलों की भीड़ में तेरा रोना तय हो जाता हैं ..
सौदागरों की मंडी में स्वाभिमान की बोली लगाता हैं , अनमोल हैं तेरा स्वाभिमान अच्छे से अच्छा नेता तेरे सामने भिखारी बन जाता हैं ,
असफल तो होना ही था तुझे , तू न तो समझौता कर पाता है और न ही तुझे सौदा करना आता हैं
साधारण आदमी से ही खुश रहता हैं परिवार , महापुरष तो न अच्छा पति कहलाता हैं न ही अच्छा बाप बन पाता हैं |
महापुरुष का जीवन लोगो को मरने के बाद समझ आता हैं , तू चीज़ क्या हैं देवता को भी यहाँ कीलों से लटका दिया जाता हैं
कैसे कर पाएगा भला तू इन खुदगरजों का ,तेरे को बातें बनाना भी तो नहीं आता हैं .|
खुदगर्ज़ जनता स्वाभिमान से हमेशा डरती हैं तभी तो सरल व्यक्ति को चुनती हैं |
जनता तो उस औरत की तरह होती है जब तक बेईमानी से उसका पेट भरे तब तक खुश रहती हैं , यदि पड़ गया भूखा रहना स्वाभिमान से एक दिन भी ,तो पल भर में तलाक दे देती हैं |
ये दुनिया प्रतिभा से डरती हैं साधारण सा आदमी और बेईमान चुनती हैं , न खुद बदलती हैं न बदलने देती हैं
खुद तो बईमान रहती हैं और दूसरों से ईमानदारी को उम्मीद करती हैं , चाहे लाख जतन कर लो ये दुनिया ऐसे ही चलती रहती हैं
पोंछ दे अपने आंसू अभी तेरा सफर सुरु हुआ हैं ,हो सकता तेरे को लोग कीलों से नहीं लटकाएंगे , हो सकता तेरा स्वाभिमान देख तेरे मरने से पहले लोग थोड़ा ही सही कुछ तो स्वाभिमानी हो जाएंगे |
अभिषेक यादव
कहते हैं सीधा पेड़ पहले कटता हैं , मैं कहता हूँ सीधा भी सत्ता में आकर टेढ़ा हो जाता हैं ,
सीधा ही रहा पेड़ अगर,, तो सत्ता में कहाँ टिक पाता हैं |
कहता हूँ क्यों नहीं पी पाता अपमान , जब नहीं आता बेचना तुझे अपना स्वाभिमान,
जो स्वाभिमानी होता हैं कभी अच्छा व्यापारी नहीं बन पाता हैं , देश का सौदा नहीं कर पाता हैं ,
असल मजा तो बेचने मै आता हैं तू बैठा बैठा समझदारी का चौपाल लगाता हैं ,विडंबना ये हैं ,कोई भी समझदारी का मत तेर पक्ष में नहीं आता हैं , पागलों की भीड़ में तेरा रोना तय हो जाता हैं ..
सौदागरों की मंडी में स्वाभिमान की बोली लगाता हैं , अनमोल हैं तेरा स्वाभिमान अच्छे से अच्छा नेता तेरे सामने भिखारी बन जाता हैं ,
असफल तो होना ही था तुझे , तू न तो समझौता कर पाता है और न ही तुझे सौदा करना आता हैं
साधारण आदमी से ही खुश रहता हैं परिवार , महापुरष तो न अच्छा पति कहलाता हैं न ही अच्छा बाप बन पाता हैं |
महापुरुष का जीवन लोगो को मरने के बाद समझ आता हैं , तू चीज़ क्या हैं देवता को भी यहाँ कीलों से लटका दिया जाता हैं
कैसे कर पाएगा भला तू इन खुदगरजों का ,तेरे को बातें बनाना भी तो नहीं आता हैं .|
खुदगर्ज़ जनता स्वाभिमान से हमेशा डरती हैं तभी तो सरल व्यक्ति को चुनती हैं |
जनता तो उस औरत की तरह होती है जब तक बेईमानी से उसका पेट भरे तब तक खुश रहती हैं , यदि पड़ गया भूखा रहना स्वाभिमान से एक दिन भी ,तो पल भर में तलाक दे देती हैं |
ये दुनिया प्रतिभा से डरती हैं साधारण सा आदमी और बेईमान चुनती हैं , न खुद बदलती हैं न बदलने देती हैं
खुद तो बईमान रहती हैं और दूसरों से ईमानदारी को उम्मीद करती हैं , चाहे लाख जतन कर लो ये दुनिया ऐसे ही चलती रहती हैं
पोंछ दे अपने आंसू अभी तेरा सफर सुरु हुआ हैं ,हो सकता तेरे को लोग कीलों से नहीं लटकाएंगे , हो सकता तेरा स्वाभिमान देख तेरे मरने से पहले लोग थोड़ा ही सही कुछ तो स्वाभिमानी हो जाएंगे |
अभिषेक यादव
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