Tuesday, 5 June 2018

क्या आप आ सकोगे एक बार फिर इस जमाने में "काश हमको नाज़ होता फांसी पर चढ़ जाने में".. -भगत सिंह ,

एक दिन कुछ देश भक्तों ने  दिल से पुकारा भगत  सिंह राजगुरु और सुखदेव को और बोला आज फिर से जरूरत आन पड़ी है आप की ,,क्या आप आ सकोगे एक बार फिर इस जमाने में , 

बोले तीनो ,,, देख रहे हैं  भारत के हालात  इस जमाने में 
हमने तो सर कटवा दिए इन गद्दारों  के सर बचाने में,

एक पल भी न सोचा हमारे बारे में ,,पूरा वक़्त गया लोगो का अंग्रेजी  पढ़वाने में , 
हम तो क्रांतिकारी थे देश भक्त थे , पर जरा भी वक़्त न लगा हमको टेररिस्ट बताने में ( नोट: NCERT Textbooks )
हमने तो सर कटवा दिए इन गद्दारों  के सर बचाने में,

था हमारा देश सोने की चिड़िया,, न वक़्त लगा इनको रूपये को  पैंसठ  गुना गिराने में ( १ डॉलर = ६५   रुपया )
अच्छा है,नहीं छापते लोग हमारी फोटो नोटों में ,,,,नहीं तो रुपया गिरने  के साथ हम भी गिरते जाते  इस जमाने में ..
हमने तो सर कटवा दिए इन निकम्मो  के सर बचाने में

आज हो गए सब देश भक्त हज़ार के नोट नहीं चलते इस ज़माने में 

हमने तो  दिया था पूरा भारत,,आज कश्मीर तक नहीं बचा पाते लोग और वीसा लगता है मानसरोवर जाने में ,
हमने तो सर कटवा दिए इन बुजदिलों  के सर बचाने में

आज बेचारा मर जाता है किसान फसल उगाने में , नेता खाते है हाजमे की गोली अपना खाना पचाने में ,
हमने  तो सर कटवा दिए इन मुफ्तखोरों   के सर बचाने में

जो कर दिखाया हमने सिर्फ तेईस (२३) सालों में ,न कर सके लोग सत्तर (७०) सालों में 
हमने तो सर कटवा दिए इन बेईमानों के सर बचाने में

इंडिया के नाम से जानते हैं लोग आज भारत को , नाम भी न बचा पाये देश का और विश्वास रखते हैं मुंबई को शंघाई बनाने में ,
काश चीन बोलता शंघाई को मुंबई बनाने की बात तो नाज़ होता हमको फांसी पर चढ़ जाने में  .
हमने तो सर कटवा दिए इन अंग्रेज़ों के चमचों  के सर बचाने में 

पाकिस्तान बताता है कश्मीर को अपना ,,चीन समझता है शान अरुणाचल को अपना बताने में , 
भारत माता को नोच रहे थे जब ये दोनों, तब नेता रात बिता रहे थे मैखानो में 
हमने तो सर कटवा दिए इन  ख़ुदग़र्ज़ों  के सर बचाने में 

करोडो खर्च होते हैं उन नेताओ के जन्मदिन पर जिनने पल भर नहीं सोचा  देश लुटाने में , पी. ओ. के. बनवाया , चीन से हारे और शर्म भी नहीं आई अपने आप को  भारत रतन दिलवाने में , हमने तो सर कटवा दिए इन बुजदिलों  के सर बचाने में

करोडो खर्च हुए कसाब पर और मुशर्रफ को बुलाने में , दे देते ये पैसा किसानो को तो न करते आत्महत्या , जान आ जाती बेचारों में 

पेट्रोल के दाम बढे तो कुयूं  फैलाते हो विदेशों के सामने हाथ , क्या शर्म आती है इज़्ज़त से साइकिल चलाने में 
हमने तो सर कटवा दिए इज़्ज़त की  ज़िंदगी दिलवाने  में

फेस बुक और व्हाट्सअप पर हमको शेयर करने वालों कभी सच्चे दिल से हमको याद करना ,
एक सौ चौदह (११४) नहीं  सिर्फ एक दिन भूखे प्यासे बिताना तहखानों में , समझ आ जायेगा क्या तेज था हम देश भक्त दीवानों में 

नहीं चाह है ,भारत रतन की हमको ,  बस   अनुरोध है , आज की पीढ़ी से ,,जगा लेना  देशभक्ति अपने दिलों में ,
जगा देना  फिर वही जज़्बा अपने बच्चों और यारों में  ,पैदा हो जाएंगे हम आने वाले जवानो में , 
इंसान नहीं विचार हैं  हम ,कभी मर नहीं सकते , अभी भी जिन्दा हैं बस देख लेना  सच्चे देश भक्त जवानो में ,
हमने तो सर कटवा दिए यही जज़्बा जगाने  में

पकड़ना टुकड़ा बर्फ का  सिर्फ १० मिनिटों के लिए  हाथों में,, पता चल जायेगा , कैसे बिताईं थीं हमने एक सौ चौदह रातें , बर्फ की सिल्लियों पर उन गर्म जोश जज़बातों में .

कर सकते देश की सेवा कुछ दिन और, यदि न कांपते नेताओ के हाथ हमको बचाने में ,
जिन्दा होते तो फहरा देते तिरंगा पूरी दुनिया में इन सत्तर (७०)  सालों में ,
ऐ मेरी माँ हमे माफ़ करना तेरा सहारा न बन पाये हम , ये जीवन हसते हसते चला गया  भारत माँ का क़र्ज़ चुकाने में , 

हम देश भक्तों को तो सच्ची जनता ही समझती है ,
बहुत से बेईमान भरे पड़े है हैं इस देश में नहीं तो गुलामी इतनी लम्बी कहाँ  होती है ,

याद है फांसी के  पहले की वो रात जब कह दिया था माँ से मैंने ,ना आना पार्थिव भगत को लेने ,
न समझ पाएंगे बेईमान  नेता तेरी  कुर्बानी ,बना देंगे उसको भी बेमानी  

आज भगत ना सह पायेगा अपनी माँ की ये दशा , सच्चे देश भक्तो की माओं की कहा इज़्ज़त  होती है ,
यदि टपक गए तेरे कोमल ह्रदय से दो आंसू , न वक़्त लगेगा लोगो को कहने में ,, भगत की माँ रोती है ,भगत की माँ रोती है ,

ऐ देशभक्तों न चढ़ना अब तुम फांसी पर , अब तो  जी जान लगा देना इन गद्दारों को फांसी चढ़वाने में ,हमने तो सर कटवा दिए देश को आज़ाद करने  में

फिर से आयंगे हम विचार बन कर भारत के वीर जवानो में ..

To be continued...

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