Sunday, 6 March 2016

आज मैं किसी से नाराज़ नहीं हूँ, बस गम है
इस बात को देखते-देखते मैं सोलह का हुआ और अब देखते-देखते बड़ा हो गया,
पर जो सोचा था करने का वो न जाने कब कर पाउँगा?
गम इस बात का भी है कि जब खुश होकर नाचना था तब  किसी छोटी सी बात को सोचकर दुखी होता रहा
न खुद मौज कर सका न ही किसी और को भरपूर आनंद लेने दिया,
बचपन तो बचपने में चला गया और जवानी नादानी में जा रही है,
इल्म नहीं हुआ क्या गया और क्या जा रहा है,
जवानी भी एक दिन साथ छोड़ देगी तब हो न हो समझदारी जरूर आ जाएगी,
बस सोचता हूँ कुछ शब्द कभी पीछा नहीं छोड़ेंगे जैसे -
काश मैं कर लेता
काश मुझे अकल होती
काश मैंने अपने आप को समझा लिया होता
काश मैंने किसी कि ग़लतियों को माफ़ कर दिया होता
काश मैंने खुद को भी माफ़ कर दिया होता
काश माँ को दुःख न दिया होता
काश पिता के दर्द को समझ पाता
आज जब जवाबदारी आई तो एहसास हुआ कि काश कुछ समय पहले ही बड़ा हो गया होता
तो बचपन को समझदारी के साथ आनंद में जिया होता और जवानी को ज़िंदादिली के साथ खो रहा होता
और जब बुढ़ापा आता तो शांति के साथ मर रहा होता
आज वैसे न जवानी चरम पर है और न ही बुढ़ापा शुरू हुआ है
अब भी वक़्त है थोड़ा,, क्युकि मैं जाग गया हूँ  सवेरा हुआ है
सवेरे के साथ एक प्रण लिया है
बचा है जो वक़्त  ऐसे न जा पाएगा जो सिर्फ खर्च हो सकता है वो सिर्फ आनंद के साथ खर्च किया जाएगा
अब जो वक़्त खर्च होगा वो यादों में बस जाएगा
अब ज़िन्दगी का अर्थ भले ही निकले न निकले बुढ़ापा आने का ग़म न सताएगा।

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