Friday, 25 March 2016

कभी जब आप को कोई मार्ग नहीं सूझे तो ये काम अवश्य करे :
1. सबसे पहले शांत मन करके मौन धारण करे
2. उसके बाद ये सोचे की जिस वजह से आप पेरशान वो कौन सी है
3. यदि वो वजह बहुत ही ज्यादा समस्या पैदा कर रही हो तो उसके जड़  को नष्ट करने की सोचे
4. जड़ को नष्ट करना ये बिलकुल नहीं है की हम किसी को नुक्सान पहुचाये अपितु अपने आप में  इतना सक्षम बने और  साथ ही ऐसा काम करे कि आप का शत्रु स्वयं ही हार मान जाए और आपका मार्ग स्वयं ही छोड़ दे .

एक उदाहरण के लिए :

1. जैसे अभी  के समय बहुत सारे लोग ऐसे होंगे जो की अपने मैनेजर से बहुत परेशान होंगे या किसी ऊपर वाले अधिकारी से पेरशान होंगे तब आप ये सोचे कि ऐसा क्यों है , ऐसा इसीलिए है कि आप उस इंसान से कमजोर हैं और अपने आप को सशक्त बनाने के लिए ऐसा क्या काम करे कि उसके भी  ऊपर वाला अधकारी आप के काम से प्रभावित हो  जाए , याद रखिये ऐसा तभी हो सकता जब आप ये काम करेंगे

सबसे पहले अपना काम ईमानदारी से करे यदि कोई इसमें बाधा डालता हो तो सही समय की प्रतीक्षा लगातार करें और अथक प्रयास के साथ करे , निश्चित ही ईश्वर  आपको अपनी प्रतिभा दिखने का मौका देगा और वो भी बहुत  जल्दी ,यदि आपने अपना काम ईमानदारी से किया है और जवाब सही समय का इंतज़ार करते हुए अपने काम से दिया है  तो आप जीत ही जाएंगे

 याद रखे हर इंसान को ईश्वर उचित समय देता है बस समस्या इतनी है की अधिकाँश लोग सिर्फ इसीलिए सफल नहीं हो पाते की वो बिना तैयारी के उस अवसर को मूक बनकर अपने हाथ से जाने देते है और वो लोग जो तैयारी के साथ रहते है वे उसका लाभ उठा पाते हैं।

गुरुमंत्र : " असफ़लता  सिर्फ और सिर्फ यह दर्शाती है की सफलता का प्रयास मन लगाकर नहीं किया गया "
“ Failure is just simply reflecting the success of this effort has not been carefully" 

Sunday, 6 March 2016

आज मैं किसी से नाराज़ नहीं हूँ, बस गम है
इस बात को देखते-देखते मैं सोलह का हुआ और अब देखते-देखते बड़ा हो गया,
पर जो सोचा था करने का वो न जाने कब कर पाउँगा?
गम इस बात का भी है कि जब खुश होकर नाचना था तब  किसी छोटी सी बात को सोचकर दुखी होता रहा
न खुद मौज कर सका न ही किसी और को भरपूर आनंद लेने दिया,
बचपन तो बचपने में चला गया और जवानी नादानी में जा रही है,
इल्म नहीं हुआ क्या गया और क्या जा रहा है,
जवानी भी एक दिन साथ छोड़ देगी तब हो न हो समझदारी जरूर आ जाएगी,
बस सोचता हूँ कुछ शब्द कभी पीछा नहीं छोड़ेंगे जैसे -
काश मैं कर लेता
काश मुझे अकल होती
काश मैंने अपने आप को समझा लिया होता
काश मैंने किसी कि ग़लतियों को माफ़ कर दिया होता
काश मैंने खुद को भी माफ़ कर दिया होता
काश माँ को दुःख न दिया होता
काश पिता के दर्द को समझ पाता
आज जब जवाबदारी आई तो एहसास हुआ कि काश कुछ समय पहले ही बड़ा हो गया होता
तो बचपन को समझदारी के साथ आनंद में जिया होता और जवानी को ज़िंदादिली के साथ खो रहा होता
और जब बुढ़ापा आता तो शांति के साथ मर रहा होता
आज वैसे न जवानी चरम पर है और न ही बुढ़ापा शुरू हुआ है
अब भी वक़्त है थोड़ा,, क्युकि मैं जाग गया हूँ  सवेरा हुआ है
सवेरे के साथ एक प्रण लिया है
बचा है जो वक़्त  ऐसे न जा पाएगा जो सिर्फ खर्च हो सकता है वो सिर्फ आनंद के साथ खर्च किया जाएगा
अब जो वक़्त खर्च होगा वो यादों में बस जाएगा
अब ज़िन्दगी का अर्थ भले ही निकले न निकले बुढ़ापा आने का ग़म न सताएगा।